क्या है गणेश, विनायक और संकष्टि चतुर्थी में अंतर-
प्रत्येक मास की दोनों चतुर्थियों में यानी के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी मे, भगवान श्री गणेश जी के पूजन का विधान है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जानते हैं। अलग-अलग पक्षों के अनुरूप इनके पूजन का महत्व भी अलग अलग होता है किंतु आज हम बात कर रहे हैं भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की। इस चतुर्थी को ही श्री गणपति महाराज जी का जन्म हुआ था। जिस वजह से इस दिन का महत्व सबसे ज्यादा होता है। शुक्ल पक्ष में पड़ने की वजह से इसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। किंतु इस चतुर्थी का महत्व शेष सभी चतुर्थियों में सबसे ज्यादा होता है।
गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन क्यों है वर्जित-
गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन वर्जित माना जाता है ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्र दर्शन से कलंक लगने का भय रहता है जिसके साक्षात प्रमाण स्वयं भगवान श्री कृष्ण जी हैं जिन्हें इस दिन चंद्र दर्शन से मणी की चोरी का कलंक लगा था। इस दिन चंद्र दर्शन क्यों नहीं करना चाहिए इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि आज ही के दिन श्री गणेश जी कहीं जा रहे थे की अचानक चलते चलते वह किसी कीचड़ में गिर जाते हैं जिसे देख कर के चंद्रदेव जोर से अट्टहास करके हंसते हैं। चंद्रदेव के इस तरह के परिहास से गौरी पुत्र गणेश क्रोधित होते हैं और वे चंद्र देव को श्राप देते हैं कि इस दिन जो भी तुम्हारा दर्शन करेगा उस पर मिथ्या कलंक लगेगा। हालांकि ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की कथा को सुनने और सर पर अक्षत पुष्प डालने से यह दोष नहीं होता।
यद्यपि पूरे भारतवर्ष में गणेश चतुर्थी के दिन घर पर गणपति महाराज की प्रतिमा को लाकर विधि विधान से पूजन किया जाता है तथापि महाराष्ट्र में इस पर्व के हर्षोल्लास की शोभा देखते ही बनती है।
गणपति महाराज के पूजन का विधि विधान-
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे व अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त हो स्नान करें। लाल अथवा पीले रंग के साफ स्वच्छ अथवा नए वस्त्र को धारण करें। इस दिन काले नीले रंगों के वस्त्र ना पहने। सर्वप्रथम गणपत महाराज के पूजा की चौकी को तैयार करें। उस पर सुंदर लाल वस्त्र बिछाये और गणेश जी की मिट्टी की बनी प्रतिमा को स्थापित करें मिट्टी की प्रतिमा ना होने की स्थिति में श्री गणेश के चित्र स्थापित करके भी पूजन किया जा सकता है। सर्वप्रथम षटकर्म द्वारा खुद का पवित्रीकरण करें। तत्पश्चात अपनी श्रद्धा व क्षमता अनुसार पूजन और व्रत का संकल्प लें। भगवान श्री गणेश की प्रतिमा के सामने दायी तरफ चावल का अष्टदल कमल बना कर उस पर कलश को स्थापित करें, एवं घृत का दीपक जलाएं। इस दीपक को अपनी क्षमता अनुसार अखंड अथवा पूजा अवधि तक प्रज्वलित रखें हैं। इसके पश्चात श्री गणेश जी का शास्त्रोंक्त विधि द्वारा षोडशोपचार मंत्र से पूजन करें। सर्वप्रथम उनका आवाहन करें फिर उनके सम्मुख एक पूजा की थाली में चार चम्मच जल चढ़ाएं और भावना करें कि आप गणपति महाराज को पाद प्रक्षलन, हस्त प्रक्षालन आचमन और एवं स्नान करा रहे हैं।
तत्पश्चात वस्त्रा-आभूषण से उनका सिंगार करें, उनको यज्ञोपवीत धारण कराएं। गणपत महाराज को लाल सिंदूर अत्यधिक प्रिय है, जिस हेतु उन्हें लाल सिंदूर चढ़ाएं। फिर पुष्प चढ़ाए हरी दूर्वा चढाए और धूप दीप दिखाते हुए ऋतु फल गन्ना एवं नैवेद्य के रूप में मोदक और बेसन के लड्डू भोग दें। इसके पश्चात एक चम्मच जल चढ़ाते हुए उन्हें तांबूल पुंगीफलानी अर्थात लौंग इलाइची व साबूत सुपारी से बने पान के बीड़े को चढ़ाएं और दक्षिणा समर्पित करें। पूजन में किसी वस्तु की कमी रह गई हो तो उस अभाव की पूर्ति हेतु अक्षत समर्पित करें और गणपति महाराज से अपने और अपने घर परिवार व समाज के मंगल की कामना करें।
तत्पश्चात उनका भाव भजन करते हुए श्री गणेश जी की चालीसा, कथा एवं आरती करें और सभी को प्रसाद दे।
इस तरह से 10 दिनों तक विधिवत रूप से श्री गणेश जी की पूजा अर्चना करने से विघ्नहर्ता आपके सभी विघ्नों को दूर करते है और सुख समृद्धि बुद्धि ज्ञान विवेक वैभव का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
अब जान लेते हैं गणेश चतुर्थी के पूजन में क्या करें और क्या ना करें-
१ गणपति महाराज के स्थापना के 1 दिन पहले से ही घर को अच्छी तरह से साफ सुथरा और पवित्र कर ले एवं घर में किसी भी तरह तामसिक भोजन को ना पकाएं।
२ जितने दिन के लिए भी गणपत महाराज को आपने अपने घर पर स्थापित कर रहे हैं, उतने दिन घर परिवार की साफ सफाई और शुचिता का पूरा ख्याल रखें।
३ इन 10 दिनों में किसी भी तरह के दुष्ट आचरण, दुशचिंतन एवं दुर्भाव से बचें।
४ घर में स्नेह प्यार एवं सहकार का वातावरण रखें बड़ों को सम्मान एवं छोटों को प्यार दे।
५ काले अथवा नीले रंग के परिधानों को पहनने से बचें क्योंकि यह रंग नकारात्मक ऊर्जा के आवशोषक होते हैं अतः पूजन काल में अथवा इस दरम्यान ऐसे वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।
५ श्री गणेश को चाढने वाले नैवेद्य मोदक, बेसन के लड्डू एवं अन्य मिष्ठान को बाजार से ना खरीद कर घर पर बनाएं। शुचिता और शुद्धता की दृष्टि से यह अनिवार्य है।
६ श्री गणेश के भोग में तुलसीदल नहीं चढ़ाते हैं इसका ख्याल रखें।
७ जिस तरह से घर पर आए किसी विशिष्ट अतिथि के सेवा सत्कार मैं आप कोई कसर नहीं छोड़ते, उसी तरह से गणपति बप्पा के घर पर आ जाने के बाद उनके आतिथ्य में यानी के उनके स्नान, ध्यान, शयन, जागरण और भोजन-पानी इत्यादि का विशेष ध्यान देना चाहिए।
७ गणपति महाराज के चौकी के सम्मुख अखंड दीपक जरूर प्रज्वलित रखें यदि अखंड दीपक नहीं बनाए हैं तो रात्रि काल में एक दीपक उस स्थान पर अवश्य रखें।
इसके दो कारण है एक तो दिव्य सकारात्मक ऊर्जा उस ज्योति के माध्यम से उस स्थान पर अच्छादित रहती हैं, दूसरा कारण यह है कि देव प्रतिमा का दर्शन कभी अंधेरे में नहीं करना चाहिए।
९ गणपति महाराज को जहां भी आपने बिठाया है वहां किसी ना किसी को अवश्य होना चाहिए यानी के गणपति महाराज को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।
१० यदि आप श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं तो मिट्टी की प्रतिमा ही खरीदें।
बालू सीमेंट, प्लास्टर ऑफ पेरिस, थर्माकोल, सिक्के, प्लास्टिक, कांच, कागज की लुगदी या अन्य किसी पदार्थ की बनी प्रतिमा ना लें। आजकल भिन्न-भिन्न तरह के वस्तुओं से देवी देवताओं की प्रतिमा बनाने की एक होड़ सी चल पड़ी है। यहां ध्यान देने की बात है कि भगवान श्री गणेश अथवा किसी भी देवी देवता की प्रतिमा कोई बच्चों का खिलौना अथवा प्रदर्शन का सामान नहीं जिसे तरह-तरह के अनुपयोगी वस्तुओं से बना करके उसका प्रदर्शन किया जाए बल्कि यह श्रद्धा भक्ति और शुद्ध सात्विक भाव का प्रतीक है।
हमारे शास्त्रों में पूजन हेतु मिट्टी की ही प्रतिमा को सबसे शुद्ध और उपयोगी बताया गया है। अतः मिट्टी की ही प्रतिमा की प्रतिष्ठा एवं पूजन करें।
उस बालक की करुण चीत्कार से माता पार्वती भागती हुई द्वार पर पहुंचती है और अपने पुत्र की यह दशा देखकर के अत्यधिक क्रोधित हो प्रलय करने को ठान लेती हैं। तब भगवान शिव के साथ सभी देवता उनके क्रोध को शांत कराते हुए। अपने शिशु के पीठ की तरफ मुंह करके सोई हुई हथिनी के नवजन्मे बच्चे का सिर लाकर गणेश जी को लगा देते है। जिससे गौरी पुत्र जीवित हो जाते हैं और इनका नाम गजानन हो जाता है।
गणपति के प्रथम पूज्य होने की कथा-
२. शिव पुराण के अनुसार एक बार सभी देवता आपस में इस बात पर बहस करने लगे कि मैं सबसे श्रेष्ठ हूं काफी समय तक या बहस चलती रही किंतु इसका परिणाम ना निकल सका। ऐसे में सभी देवता कैलाश पर पहुंचते हैं और भगवान शिव से फैसला करने को कहते हैं।
इस पर भगवान भोलेनाथ कहते हैं कि जो पृथ्वी की तीन परिक्रमा को करके सर्वप्रथम कैलाश पर पहुंचेगा वह देवताओं में सबसे श्रेष्ठ होगा। इस पर सभी देवता अपने अपने वाहनों पर सवार हो पृथ्वी की तीन परिक्रमा करने को निकल जाते हैं।यहां पर गौरी पुत्र गणेश अपनी बुद्धि और विवेक का परिचय देते हुए यह विचार करते हैं कि माता-पिता की परिक्रमा तो पृथ्वी की परिक्रमा करने से भी श्रेष्ठ है। ऐसा सोच कर के वहीं पर वे भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की तीन परिक्रमा करने लगते हैं। उनके इस कुशाग्र बुद्धि, विवेक और चातुर्य से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं और उन्हें देवताओं में सबसे श्रेष्ठ प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता और मंगल करता होने का आशीर्वाद देते हैं।
गणेश जी के एकदन्ती कहलाए जाने की कथा-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसी कई कथाएं हैं जो श्री गणेश जी के एक दंती होने का प्रमाण देती हैं।
पहली कथा श्री परशुराम जी और गणेश जी के युद्ध से जुड़ी हुई है एक बार महादेव शिष्य परशुराम जी बिना अनुमति के अपने गुरु भगवान शिव के दर्शन करने की इच्छा से कैलाश पहुंचते हैं किंतु गणेश जी उन्हें अंदर जाने से मना कर देते हैं। इस पर परशुराम जी हठ करते हुए कहते हैं कि मुझे मेरे गुरु से मिलने से कोई नहीं रोक सकता और वे श्री गणेश को युद्ध की चुनौती देते हैं। इस पर परशुराम जी और श्री गणेश जी के मध्य भीषण युद्ध होता है उसी युद्ध के दौरान फरसे के प्रहार से श्री गणेश जी का एक दांत टूट जाता है जिससे उनका नाम एकदन्ती पड़ जाता है।
दूसरी कथा-
ऐसी ही एक और कथा श्री कार्तिकेय जी और गणेश जी की भी है। बचपन से ही श्री गणेश जी काफी शरारती और चंचल प्रवृति के होते हैं जबकि उनके बड़े भाई कार्तिकेय जी बहुत ही सीधे और सरल स्वभाव के । बड़े भाई कार्तिकेय के सीधेपन एवं सरलता के वजह से गणेश जी अक्सर उन्हें तंग करते, उनके साथ शरारत करते और उन्हें तरह तरह से परेशान करते। एक बार कार्तिकेय जी स्त्री पुरुष शरीर रचना से संबंधित कोई पुस्तक लिखा है थे कि तभी श्री गणेशा आ करके उनके इस कार्य में विघ्न डाल देते हैं। जिस पर कार्तिकेय जी काफी क्रोधित होते हैं और उनकी पिटाई कर देते हैं इस पिटाई के दौरान ही उनका एक दांत टूट जाता है।
तीसरी कथा-
ऐसी ही एक और कथा वेदव्यास जी और गणेश जी की है कहा जाता है कि महाभारत लिखने के क्रम में श्री गणेश जी ने वेदव्यास जी से शर्त रखी थी, कि मैं तब तक ही लिखूंगा जब तक आप लगातार बोलते रहेंगे। इस पर वेदव्यास जी ने श्री गणेश जी से कहा कि ठीक है किंतु अपने मन से आप कुछ नहीं लिखेंगे। कहा जाता है कि इसी लेखन क्रम में श्री गणेश जी का कलम टूट जाता है लिखना बंद ना हो इस हेतु श्री गणेश स्वयं अपना एक दांत तोड़ करके उसकी लेखनी बना लेते हैं
इस तरह से श्री गणेश जी के एक दंती होने के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं।