पित्र पक्ष की अनिवार्यता, विशेषता एवं महत्वता


पित्र पक्ष की अनिवार्यता-


       पित्र तर्पण और श्राद्ध हिंदू धर्म का एक ऐसा कृत्य हैं जिसे हर संतान को अपने पूर्वजों और पितरों के निमित्त अवश्य रूप से करना ही चाहिए। जन्म लेने वाली प्रत्येक संतान अपनी जन्म काल से ही ३ प्रमुख ऋण लेकर के पैदा होती है। प्रथम ऋण भगवान विष्णु के निमित्त, जिसे देव ऋण कहते हैं दूसरे को भगवान शिव के निमित्त जिसे ऋषि ऋण कहते हैं, तीसरा ऋण पित्र ऋण जो जन्म देने वाले माता-पिता अपने पूर्वज भाई बहन और परिवार के निमित्त होता है और चौथा ऋण भगवान ब्रह्मा के ऋण के रूप में मानते हैं। 

       देव ऋण को अपने सदाचरण, भक्ति भाव, पूजा पाठ, जप तप, हवन भजन और धार्मिक कृत्य को करते हुए पूर्ण किया जा सकता है जबकि ऋषि ऋण की पूर्ति वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण,गीता जैसे धर्म ग्रंथों को पढ़कर और उनका प्रचार-प्रसार करके पूरा किया जाता है। अब बात कर लेते हैं तीसरे और सबसे प्रमुख ऋण जिसे की पित्र ऋण के नाम से जानते हैं। यह ऋण माता-पिता के जीवन काल में उनके प्रति सच्ची सेवा निष्ठा भक्ति उनके कर्तव्य परायण और आज्ञा पालन से किया जाता है और उनके जीवित ना रहने के पश्चात उनके लिए प्रत्येक वर्ष पित्र पक्ष में श्राद्ध तर्पण, पिंड दान, ब्राह्मण भोजन, अंशदान, अन्न दान आदि के रूप में करके पूरा किया जाता है। 

         मनुष्य के ऊपर यह एक सबसे बड़ा ऋण होता है इस ऋण को ना मानने वाले अथवा इसका उल्लंघन करने वाले को कभी ईश्वर भी सहाय नहीं हो सकते क्योंकि पित्र लोक में बसने वाले हमारे पितर एक तरह से हमारे और ईश्वर के बीच की एक सीढी होते हैं यदि पित्र प्रसन्न होते हैं तो ईश्वर की अनुकंपा भी प्राप्त हो जाती है। किंतु यदि पित्र असंतुष्ट दुखी और अतृप्त है तो ईश्वर भी कुछ नहीं कर सकते। इसीलिए पित्र ऋण को प्रत्येक संतान को पूरी श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ चुकाना ही चाहिए। 

किस पित्र का श्राद्ध किस तिथि में करें-




 भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर के अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक के 16 दिन की तिथियो को पितृपक्ष कहते हैं। इन 16 दिनों के दरम्यान पित्र अपने वंशजों के सबसे ज्यादा करीब होते हैं और अपने वंशजों से अपने आत्म कल्याण अपनी मुक्ति और तृप्ति की उम्मीद करते हैं। इस काल में दिवंगत पितर के निमित्त श्रद्धा पूर्वक पित्र तर्पण, श्राद्ध कर्म और दान पुण्य करने वालों से पितर प्रसन्न होते हैं जिससे उनको तृप्ति, संतुष्टि और मुक्ति प्राप्त होती है, और वे अपने वंशजों को सुख, समृद्धि, सौभाग्य, संतान, संपत्ति आदि का वरदान दे करके जाते हैं।

  जबकि ऐसा ना करने वाले वंशजों के पितर अतृप्त, असंतुष्ट, भूखे, अशांत और उसी योनि में पड़े रह जाते हैं। भूखे, प्यासे, दुखी और अतृप्त होकर वह क्रोधित हो कर के अपने वंशजों को अभिशाप देते हैं, जिससे संतान बाधा, धन हानि, अपयश, कार्यों में असफलता, धन संपत्ति होने पर भी उसे उपयोग ना कर पाना, पारिवारिक क्लेश इत्यादि तरह-तरह के कष्ट झेलने पड़ते हैं। जिससे कि पितृदोष के नाम से जाना जाता है।

अतः इन 16 दिनों में अपने पितरों का श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध अवश्य करें 

इस वर्ष 20 सितंबर 2021 से श्राद्ध पक्ष प्रारंभ हो रहे है

20 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा का श्राद्ध होगा। पूर्णिमा तिथि पर जिन की भी मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है । इसके अतिरिक्त अष्टमी, द्वादशी या फिर पित्रमोक्ष अमावस्या को भी किया जाता है।

21 सितंबर 2021 अश्विन मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा पक्ष का श्राद्ध है जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि में हुई हो उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है। इसके अतिरिक्त नाना-नानी या फिर ननिहाल पक्ष में किसी का भी श्राद्ध करना हो और उनकी तिथि ना पता हो तो प्रतिपदा में उनका श्राद्ध किया जा सकता है।

22 सितंबर को द्वितीय का श्राद्ध होगा। परिवार में जिस किसी की भी मृत्यु द्वितीय तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध द्वितीय तिथि को किया जाता है।

इसी तरह से 23 सितंबर को तृतीया का श्राद्ध

24 सितंबर को चतुर्थी तिथि का श्राद्ध

25 सितंबर को पंचमी का श्राद्ध होगा। इस तिथि में अविवाहित अवस्था में मृत्यु को प्राप्त पितर के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिसे कुंवारों का श्राद्ध भी कहते हैं।

26 सितंबर को भी पंचमी तिथि मध्यान्ह काल के 1:06 PM तक रहेगा तत्पश्चात षष्ठी तिथि लग जाएगी जिस हेतु इस दिन कोई श्राद्ध नहीं होगा।

     यहां ध्यान देने की बात है कि मृत्यु तिथि पर होने वाले श्राद्ध को अपराह्न काल में करने की शास्त्र आज्ञा है। कभी-कभी तिथियों के ह्रासवृद्धि के कारण एक ही तिथि 2 दिन अपराहन को स्पर्श कर लेती है जैसा कि 25 और 26 सितंबर की तिथि में देखने को मिल रहा है उस स्थित में सुविधा अनुसार श्राद्ध पूर्वापर दिन में किया जा सकता हैं। 

इसी तरह से 27 सितंबर को षष्ठी का श्राद्ध होगा। इसे छठ श्राद्ध भी कहा जाता है।

28 सितंबर को सप्तमी का श्राद्ध होगा।

29 सितंबर को अष्टमी का श्राद्ध होगा अष्टमी तिथि में जिसकी मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है इसके अतिरिक्त पूर्णिमा तिथि पर यदि किसी की मृत्यु हुई है तो उसका श्राद्ध भी आज किया जाता है।

30 सितंबर को नवमी का श्राद्ध है इसे मातृ नवमी भी कहते हैं। इस दिन माता का श्राद्ध किया जाता है, भले ही उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में क्यों ना हुई हो। इसके अतिरिक्त सुहागिन स्त्रियों एवं जिन की तिथि, नहीं पता है उन महिलाओं का भी श्राद्ध इस दिन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि नवमी के दिन श्राद्ध करने से जातक के कष्ट दूर होते हैं।

1 अक्टूबर को दशमी का श्राद्ध है परिवार के जिस पित्र की मृत्यु इस तिथि को होती है उनका श्राद्ध इस दिन करते हैं

2 अक्टूबर को एकादशी का श्राद्ध है इस तिथि में सन्यास लेने वाले मृत्यु प्राप्त परिजनों का श्राद्ध किया जाता है।

3 अक्टूबर को द्वादशी तिथि का श्राद्ध होगा जिसे कि सन्यासियो का श्राद्ध, के नाम से भी जाना जाता है। जिनके परिवार में पिता सन्यासी हो गए हो उनका श्राद्ध इसी तिथि को करना चाहिए।

4 अक्टूबर को त्रयोदशी का श्राद्ध है इस तिथि में परिवार में मृत्यु को प्राप्त छोटे बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।

5 अक्टूबर को चतुर्दशी का श्राद्ध है परिवार में जिस किसी की भी मृत्यु अकाल हुई हो, यानी के जलकर, डूबकर, विष से सर्पदंश से या किसी तरह के आघात आदि से हुई हो। आज के दिन उनका श्राद्ध किया जाता है भले ही उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में क्यों ना हुई हो। चतुर्दशी तिथि को सामान्य मृत्यु प्राप्त पित्र का श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या वाले दिन करना चाहिए।

6 अक्टूबर को अमावस्या का श्राद्ध है। इस तिथि पर ज्ञात अज्ञात सभी तरह के पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। जिसे पितृ विसर्जन, पित्र अमावस्या, महालय समापन अथवा भूले बिछड़े का श्राद्ध आदि नामों से जाना जाता है।

    यहां यह ध्यान देने की बात है कि किसी की भी मृत्यु किसी भी पक्ष में क्यों ना हुई हो उनका श्राद्ध तिथि के अनुसार होगा।  यहां श्राद्ध के लिए पक्षों में कोई भेद नहीं है। अर्थात शुक्ल पक्ष में मृत्यु हुई हो अथवा कृष्ण पक्ष में। पित्र पक्ष में उनके लिए श्राद्ध का विधान इसी महालय की तिथियों में किया गया है।

     अज्ञानता बस कुछ लोग ऐसा भी करते हैं कि जिस दिन पित्र की तिथि समाप्त हुई एवं श्राद्ध कर्म कर लिया उसके बाद से वह पितरों का जल तर्पण भी बंद कर देते हैं। यानी के मान लीजिए कि किसी का श्राद्ध पंचमी तिथि को था, तो वे पंचमी तिथि को श्राद्ध करने के पश्चात उस दिन से पितरों को जल तर्पण करना भी बंद कर देते हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। यह 15 दिन का एक पक्ष उनके निमित्त है भले ही तिथि के अनुरूप आप ने उनका श्राद्ध पहले ही कर दिया हो किंतु पित्र विसर्जन तक नियमित रूप से उन्हें जल तर्पण करना चाहिए।

प्रायः पित्र पक्ष में पंचक लगने की वजह से कुछ लोग पितरों को जल तर्पण एवं श्राद्ध कर्म नहीं करते जबकि पंचक लगने पर कुछ वर्जित कार्य जैसे कि अंतिम संस्कार ना करना, दक्षिण दिशा में यात्रा ना करना, घर का छत ना डलवाना अथवा चारपाई ना बिनवाने जैसे कार्य वर्जित बताए गए हैं। ना कि पितरों को जल तर्पण और श्राद्ध ना देना।

प्रायः यह भी प्रश्न उठता है कि अमुक व्यक्ति के पुत्र है ही नहीं ऐसी स्थिति में इनका जल तर्पण अथवा श्राद्ध कौन करेगा इस स्थिति में उनकी कन्या अथवा कन्या के पुत्र को श्राद्ध करने का और जल तर्पण का पूरा अधिकार होता है।

 पित्र प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न- श्राद्ध कर्म से बढ़कर  कोई भी कल्याणकारी कार्य नहीं है। वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।

आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।।(यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)

   इस श्लोक के अनुसार यमराज जी का कहना है कि श्राद्ध कर्म से मनुष्य को ६ तरह के लाभ प्राप्त होते हैं 

१* श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु में वृद्धि होती है।
२* पित्रगण की कृपा से ही वंश की वृद्धि होती है और संतान एवं पुत्र की प्राप्ति होती है
३* पितरों के आशीर्वाद स्वरुप ही घर परिवार में धन धान एवं समृद्धि की वृद्धि होती है
४* श्राद्ध कर्म करने से मनुष्य के शरीर में बल एवं पौरुष की वृद्धि होती है और यह कर्म मनुष्य को यश व पुष्टि प्रदान करता है।
५* पितरगण के तृप्त होने पर वे अपनी संतानों को स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य, सुख, समृद्धि, स्वर्ग व मोक्ष आदि सभी कुछ प्रदान करते हैं।
६* जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर्म को करते हैं उनके परिवार में किसी भी तरह का कोई क्लेश नहीं रहता, वरन वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।

इस तरह से पितृपक्ष के यह 16 दिन पूरी श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ अपने पितरों को समर्पित करें। इन 16 दिनों में उनको नियमित जल तर्पण करें तिथि अनुसार पिंड दान करें उनके निमित्त गाय, कुत्ता, कौवा चीटी एवं देव के नाम से पांच थाली भोजन निकालें एवं तिथि एवं श्राद्ध के दिन ब्राम्हण को भोजन कराये और उन्हें यथाशक्ति दान दक्षिणा देकर विदा करें। 

  अपने पितरों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक इस श्राद्ध कार्य को करना हर संतान के लिए एक ऋण है जिसे उसे अनिवार्य रूप से चुकाना ही होता है और चुकाना भी चाहिए। हमारे धर्म शास्त्र भी हमें यही ज्ञान देते हैं




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