क्यों इतना महत्वपूर्ण है माघी चौथ

 माघ संकष्टी व्रत व पूजन -

    किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले श्री गणेश जी की पूजा का विधान है। भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य एवं बुद्धि विवेक का देवता माना जाता है। अपने भक्तों की परेशानियों और संकटों को हर लेने के कारण इन्हें विघ्नहर्ता और संकट मोचन के नाम से पुकारते हैं। प्रत्येक मास की दोनों चतुर्थियों में श्री गणेश की पूजा का विधान है किंतु माघ महीने में पड़ने वाली सकट चौथ का विशेष महत्व होता है। इस दिन को संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ, वक्रतुण्डी चतुर्थी, माघी चौथ या तिलकुटा चौथ के नाम से भी जानते हैं। सकट चौथ के दिन महिलाएं पूरा दिन निर्जला व्रत करती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत को पूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि सकट चौथ का व्रत रखने से संतान निरोगी, स्वस्थ एवं दीर्घायु होती है। वैसे तो प्रत्येक महीने में दो चतुर्थियां पड़ती हैं। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में। अलग-अलग पक्षों में पड़ने के कारण इनके नाम भी अलग-अलग हैं। शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं, जबकि कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टि चतुर्थी कहते हैं। किंतु माघ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली इस संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है। 

सकट चौथ व्रत तिथि एवं मुहूर्त- 

21 जनवरी 2022, दिन शुक्रवार  प्रात: 8 बजकर 51 मिनट से चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो रही है जो कि 22 जनवरी 2022 दिन शनिवार को प्रातः 09 बजकर के 14 मिनट तक रहेगी।

सकट चौथ व्रत का महत्व-

    सकट चौथ के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा का विधान है। मान्यता हैं कि श्रीगणेश जी की इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से संतान निरोगी,स्वस्थ और दीर्घायु होती है। इसके साथ ही इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करने से ग्रहों से संबंधित परेशानियां एवं अशुभता भी दूर होती है।

सकट चौथ व्रत कथा-

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। जो मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण करता था। एक बार जब उसने बर्तन पकाने के लिए आंवा लगाया तो आंवा नहीं पका। उसने कई बार प्रयत्न किए किंतु आंवा नहीं पका। इसलिए वह परेशान होकर राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आज आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपुरोहित को बुलाकर इसका कारण पूछा।  राजपुरोहित ने राजा से कहा, ‘महाराज यदि नगर के कुम्हार आंवा के साथ नगर के एक बच्चे की बलि देंगे, तो आंवा पक जाया करेगा।‘’ राजा नें नगर में ये आदेश करवा दिया। कि अब आंवा के साथ नगर के एक बच्चे को भी बैठना होगा। इस तरह से अब जब कुम्हार आंवा लगाते तो नगर के एक बच्चों को उसमें बैठना पड़ता। यह नियम चलता रहा और कुछ दिनों बाद उसी गांव की एक वृद्ध महिला के  लड़के की बारी आई। बुढ़ी महिला के एक ही बेटा था। वही उसके जीवन का आखिरी सहारा था, पर राजा का कानून ये सब कहां देखता है। बहुत ही  दुःख के साथ वह बुढ़ी महिला सोचने लगी, "मेरा इकलौता बेटा सकट चतुर्थी के दिन मुझ से बिछड़ जाएगा।" तभी उसे एक उपाय सूझा। उसने अपने इकलौते लड़के को सकट की सुपारी व दूब का बीड़ा देते हुए कहा, ‘’बेटा तू भगवान श्री गणेश का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना सकट माता और गणेश जी तेरी रक्षा करेंगे।

  इस तरह से उस बुढ़िया ने अपने इकलौते बेटे को आंवा में बैठने के लिए भेज दिया, और वह खुद सकट माता के सामने बैठकर पूजा व प्रार्थना करने लगी। इसके पहले आंवा पकने में कई दिनों का लम्बा समय लग जाया करता था, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। कुम्हार ने देखा तो वह हैरान रह गया। आंवा पक गया था और बुढ़िया का बेटा भी जीवित व सुरक्षित रहा और इतना ही नहीं इसके साथ ही सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जीवित हो गये थे। इस तरह से नगरवासियों ने इस संकष्टी चतुर्थी व्रत व पूजन की महिमा को स्वीकार किया। तब से ही इस दिन सकट माता और गणेश जी की पूजा व व्रत की परम्परा चली आ रही है।

संकष्टी चतुर्थी की पौराणिक कथा-

      बहुत समय पहले की बात है, कि एक गांव में एक देवरानी व जेठानी रहती थी। जेठानी का पति काफी अच्छे पैसे कमाता था। जिसके चलते जेठानी काफी धनवान थी। उसके घर हर तरह की सुख सुविधाएं थी। इसके विपरीत देवरानी काफी गरीब और हर तरह की परेशानियों से घिरी हुई थी। उसका पति लकड़हारे का काम करता था और  अक्सर बीमार रहा करता था। जिसके चलते उसके परिवार को मुश्किल से दो वक्त की रोटियां मिल पाती थी।

 घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए वह अपनी जेठानी के घर का कुछ काम कर दिया करती थी, जिसके बदले में उसकी जेठानी उसे कुछ खाने का सामान और कुछ पैसे दे देती। इस तरह से अभाव व मुश्किलों से भरा हुआ जीवन वह व्यतीत कर रही थी। लेकिन इतनी मुश्किलों के बाद भी वह भगवान श्री गणेश जी के प्रति परम निष्ठावान थी।

  वह प्रत्येक वर्ष भगवान श्री गणेश जी का विधि विधान से पूजन करती और उसके पास जो भी होता वह पूरी निष्ठा से श्री गणेश जी को समर्पित कर पूरे परिवार के साथ उनकी पूजा-अर्चना करती।

 एक समय की बात है जब माघ सकट चतुर्थी का दिन आया तो वह श्री गणेश जी के व्रत की तैयारियों में जुट गई। कहीं से थोड़े से पैसे का इंतजाम कर बाजार से पूजा के कुछ सामान खरीद लाई। और संकष्टी व्रत की तैयारियों में जुट गयी। 

    नित्य की तरह वह अपनी जेठानी के घर काम पर भी जाया करती। माघ संकष्टी का व्रत आने वाला था इसलिए उसकी जेठानी ने भी व्रत करने के लिए ढेर सारा तिल गुड इत्यादि की व्यवस्था कर रखी थी। देवरानी जब जेठानी के घर काम के लिए पहुंच गई तो जेठानी ने उससे तिलकुट धुलवाये, पूजा की तैयारी करवाई और परिवार के लिए भोजन पकवाने जैसा सारा काम करवाया।

     जब देवरानी ने सारे काम पूरे कर लिए और वह अपने घर जाने लगी तो उसने जेठानी से कहा। 

 दीदी आज मेरा भी व्रत है अगर आप मुझे थोड़ा सा पूजा का सामान दे देंगी तो मैं भी श्री गणेश जी का पूजन कर लूंगी।

 इस पर जेठानी ने कहा, ठीक है तिल की साफाई से जो चूनी और भूसियां निकली हैं उसे लेती जा तेरे पूजन और खाने के काम में आएंगे ।

  देवरानी कुछ नहीं बोली, वह उन चूनी और भूसियों को लेकर के अपने घर आ गयी। और उसी का लड्डू बनाकर सायंकाल में चंद्रमा निकलने के बाद चंद्रदेव व गणेश जी की पूजा की। और संकट मोचन श्री गणेश से कहा हे प्रभु मुझ गरीब के पास पूजा के लिए जो भी वस्तुएं उपलब्ध हैं वह आपको समर्पित करती हूं आप उन्हें ग्रहण करें, उनसे ही संतुष्ट होइये और मुझ निर्धन गरीब पर कृपा करिए। इस तरह से वह अपने परिवार के साथ श्री गणेश जी का पूजन कर सो गयी। 

 जब रात्रि में सारा नगर सो रहा था तब श्री गणेश जी एक बुड्ढे के रूप में उसके घर आये, और उससे कहा कि मुझे भूख लगी है मुझे कुछ खाने को दो।  

 वृद्ध और भूखा जानकर उसने कहा बाबा मैं बहुत ही निर्धन हूं मेरे तो खुद के खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होता किंतु फिर भी आप मेरे घर आये हैं, तो मैंने श्री गणेश जी के लिए जो तिलकुट बनाए हैं वह आपको देती हूँ ।

 ऐसा कह कर उसने श्री गणेश जी के लिए जो तिलकुट बनाए थे वह उस बुड्ढे के सामने लाकर रख दिया।‌ अपनी भक्त के सच्चे प्रेम एवं विश्वास से बनी इस लड्डू को श्री गणेश खाते ही चले गये। जिससे उनका पेट गड़बड़ हो गया और वे उससे शौच जाने के लिए स्थान पूछने लगे। ठंड की अंधेरी रात ऊपर से बूढ़ा व्यक्ति जानकर उस महिला ने कहा बाबा इतनी रात और ठंड में तुम कहां जाओगे, ऐसा करो, घर में ही कही बैठ कर के आप निपट लो। वृद्ध के रुप में पधारे श्री गणेश ने ऐसा ही किया लेकिन कुछ समय पश्चात पुनः उस महिला को आवाज देते हुए कहा, बेटा मुझे फिर से शौच लगी है, कहां जाऊं। महिला ने पुनः कहा, बाबा कोई बात नहीं,घर में ही निपट लो। श्री गणेश ने ऐसा ही किया कुछ समय और बीता कि उन्होंने पुनः शौच जाने के लिए स्थान बताने को कहा।

इस पर उस महिला ने चिढ़ते हुए कहा, बाबा आपने तो परेशान कर दिया मेरे सिर पर ही निपट लो। इस तरह से कह कर के वह सो गयी। सुबह जब देवरानी की आंख खुली तो उसके घर का सारा नजारा ही बदला हुआ था। जिस घर में खाने को अन्न व पहनने को वस्त्र तक न थे, वह घर सोने, चांदी, हीरे, मोती और माणिक्य से भरा पड़ा था। यहां तक कि उसके सिर के ऊपर भी स्वर्ण आभूषणों और हीरे मोतियों का पहाड़ सा इकट्ठा हो रखा था। यह देखकर वह अति आश्चर्य और उल्लास से भर गयी। वह जान गई कि रात्रि में वृद्ध व्यक्ति के रूप में उसके घर पर आने वाले और कोई नहीं स्वयं गजानंद गणेश जी महाराज थे, और उन्होंने ही अपने इस दीन हीन गरीब भक्त को कंगाल से मालामाल कर दिया है। 

  उधर दिन निकल आने तक जब जेठानी के घर वह आज काम पर ना पहुंची तो उसकी जेठानी ने अपनी लड़की को भेज करके उसे काम पर आने के लिए कहा। 

  किंतु जब जेठानी की लड़की उसके घर आती है और देखती है कि उसकी चाची का घर तो सोने, चांदी, हीरे, मोतियों से भरा पड़ा है। यह सब देख वह दौड़ती हुई अपनी मां के पास वापस जाती है। और अपनी मां से चाची के घर का सारा हाल बताती है। यह सुनते ही उसकी मां दौड़ी हुई देवरानी के घर आती है, और आकर के स्वयं यह सारा माजरा देखती है और फिर देवरानी से पूछती हैं यह सब क्या है? तुम्हें इतने धन कहां से प्राप्त हुए यह सब क्या चमत्कार है।  तब उसकी देवरानी उसे सारा कहानी कह सुनाती है। की दीदी मैंने तो आपके दिए हुए तिलकुट के चूनी और भूसे से ही श्री गणेश जी का पूजन और लड्डू का भोग चढ़ाया। जिसे ग्रहण करने रात्रि में श्री गणेश जी एक वृद्ध के रुप में पधारे और कुछ खाने को मांगा।

    तब उस तिलकुट को ही मैंने उन्हें परोस दिया जिसे खाने के बाद उन्होंने शौच जाने की इच्छा जताई ,तो मैंने उनकी वृद्धावस्था और ठंड की बात सोचते हुए करुणा भाव से घर में ही निपटने को कहा, किंतु जब सुबह मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि मेरा घर तो उनके आशीर्वाद से धन, दौलत और सम्पदाओंं से भरा पड़ा है। ऐसा सुनकर उसकी जेठानी ने भी ऐसा ही करने को ठाना।

  1 वर्ष पश्चात जब पुनः माघ मास के संकष्ट चतुर्थी का दिन आया। तब वह जेठानी स्वार्थ भाव के चलते अपनी देवरानी के घर आकर उसके घर तिलकुट की साफ सफाई और उसके घर का सारा काम करती है और बदले में परिश्रम के रूप में उससे तिल के चूरे और भूसे मांगती है। जिसे ले जाकर के उसने लड्डू बनाए और रात्रि में चांद के निकलने के पश्चात श्री गणेश जी की पूजन कर वह सो जाती है। रात्रि में श्री गणेश जी वृद्ध के रूप में जेठानी के घर आते हैं, और उससे कहते हैं, "बेटा मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दो"

   जेठानी खुशी से जो लड्डू उसने बनाए थे वह उस वृद्ध को खाने के लिए दे दिये। वृद्ध ने लड्डू खाने के पश्चात शौच जाने की बात कही तो उसने अपनी देवरानी की बात याद करते हुए वृद्ध के रूप में आए श्री गणेश से घर में ही निपट लेने की बात कही।

    कुछ समय पश्चात श्री गणेश ने पुनः शौच जाने की बात कही तब भी उसने घर में ही निपटने को कहा और कुछ समय पश्चात में जब पुनः उस वृद्ध ने निपटने की बात कही तो उसने कहा मेरे सिर पर बैठ जाओ। इस तरह से कहकर के वह भी सो गई। 

   अगले दिन जब वह सुबह जगी तब उसका शरीर और घर का हर कोना शौच की दुर्गंध और गंदगी से भरा पड़ा था। जिसे देखकर वह दहाड़े मार कर रोने लगी। 

   गंदगी साफ करते करते वह थक गई लेकिन वह उस गंदगी को नहीं हटा पाई। 

   इस तरह से जब उसके पति और घर के और लोगों ने उसे इस हाल में देखा तो उससे कहने लगे यह सब तेरे लालच का फल है। छोटी बहू तो वास्तव में गरीब थी और उसने सच्चे मन से श्री गणेश जी का पूजन किया। किंतु तू तो संपन्न होने के बाद भी स्वार्थ भाव से श्री गणेश जी से धन संपदा पाने की लालच की। तूने उनसे छल करने की कोशिश की है।

  उसी का यह परिणाम है अब वही तुझे क्षमा करेंगे, उन्हीं की शरण में जा। 

  अपने पति के मुख से यह सब सुन जेठानी ने श्री गणेश जी को करुणामई आवाज में पुकारा। 

   कि हे श्री गणेश जी मुझसे भूल हो गई है मुझे क्षमा कर दो मैंने अपनी देवरानी से ईर्ष्या कर उससे अधिक धनवान होने की कामना से यह सब किया। मुझे इस विपदा से निकालो। उसकी दिन हीन पुकार सुन श्री गणेश जी प्रकट हुए और जेठानी से कहा

     लालच और ईर्ष्या का परिणाम सदैव बुरा ही होता है अब क्योंकि तुम स्वयं अपनी गलती स्वीकार कर रही हो तो मैं तुम्हें क्षमा करता हूं। सच्ची भक्ति प्रेम से तुम मुझसे कुछ भी मांग सकती हो, किंतु दूसरे के प्रति ईर्ष्या व स्वार्थ भाव रखते हुए मुझसे कुछ पाने की कामना मत करना। 

     इस तरह से श्री गणेश जी उसके घर को पुनः पहले जैसा करके अंतर्ध्यान हो गये।

  श्री गणेश जी ने जिस तरह से उस दिन हीन निर्धन गरीब देवरानी की सहायता की उसी तरह से अपने सभी भक्तों पर कृपा करें और उनकी सभी कष्टों अभावों को दूर करें।

सकट चौथ व्रत पूजा विधान-

    प्रातः ब्रह्म महुर्त में उठकर सुबह स्नान ध्यान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें, भगवान श्रीगणेश जी की मूर्ति के पास एक कलश में जल भर कर रखें। धूप-दीप, नैवेद्य, तिल, लड्डू, शकरकंद, अमरूद, गुड़ और घी अर्पित करते हुए उनके पूजन और व्रत का संकल्प लें और भगवान श्री गणेश के मंत्र का जाप करते हुए स्वच्छ और सात्विक दिनचर्या का पालन करें।

इस तरह से दें चन्द्रमा को अर्घ्य-

     सकट चौथ व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूरा माना जाता है। अर्घ्य के जल में शहद, चंदन और रोली मिश्रित दूध मिलाकर के अर्घ देना चाहिए। कुछ स्थानों पर महिलाएं व्रत तोड़ने के बाद सर्वप्रथम शकरकंद का सेवन करती हैं।

सकट चौथ व्रत में क्या करें और क्या न करें-

1. भगवान गणेश को तुलसी का भोग न लगाएं।

2. पूजा के दौरान व्रत रखने वाली महिलाएं उन्हें दुर्वा जरूर चढ़ाएं। 

3. इस दिन भूमि के नीचे उगने वाले खाद्द पदार्थ जैसे कि मूली, प्याज, चुकंदर, गाजर आदि सामग्रियों का सेवन नहीं करना चाहिए। 

4. पूजा के दौरान काले वस्त्र बिल्कुल भी न पहने। पीला, लाल या सफेद वस्त्र ही पहने।

5. सकट चौथ का व्रत चंद्र अर्घ के बाद पूर्ण होता है। अतः बिना अर्घ्य दिए व्रत भूलकर भी न तोड़े।

6. अर्घ्य देते समय जल के छीटे पैर पर पड़ना अशुभ माना जाता है।

7. श्री गणेश जी की विधिवत पूजा के बाद गणेश मंत्र ‘ॐ गणेशाय नम:’ या ‘ॐ गं गणपतये नम:’ मंत्र का 108 बार या एक माला जाप अवश्य करें।








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