देव दीपावली और भगवान शिव की महिमा

   

 भगवान शिव को प्रसन्न करती है देव दिवाली-

dev diwal
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  कार्तिक पूर्णिमा को हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है। देव दीपावली को देवों की दिवाली भी कहते है। जिस प्रकार हम मनुष्य कार्तिक अमावस्या को दिये जलाकर दीपावली मनाते हैं, उसी प्रकार कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता दिये जलाकर दीपावली मनाते है। देव दिवाली पूर्वी उत्तर प्रदेश के वाराणसी में प्रमुख रूप से मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्यौहार है। यह त्यौहार राक्षस त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की जीत के कारण मनाया जाता है। आज के दिन वाराणसी के गंगा घाट पर व मंदिरों में दीपक जलाकर सजावट की जाती है। इस साल देव दीपावली 18 नवंबर 2021 दिन गुरुवार दोपहर 12 बजे से 19 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार दोपहर 02 बजकर 26 मिनट तक रहेगी।

देव दिवाली मनाने की रोचक कथा-

एक बार कि बात है त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने अपने आतंक से मनुष्यों सहित देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों सभी को त्रस्त कर दिया था, जिसके कारण मनुष्य जाति व देवता हर कोई परेशान था, जिस पर एक दिन सभी देव गणों ने भगवान शिव से उस राक्षस का अंत करने का निवेदन किया। जिसके बाद भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया। इसी खुशी में सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और शिव जी का आभार व्यक्त करने उनकी नगरी काशी में पहुंचे, जहां देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर खुशियां मनाई। यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर काशी में देव दिवाली मनाई जाती है।

जब तारकासुर के पुत्रों ने किया ब्रह्माजी को प्रसन्न-

 तारकासुर के वध के पश्चात उसके तीनों पुत्रों ताराक्ष, विदुमनाली और कमलक्ष ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या कर उनको प्रसन्न किया और उनसे अपने लिए तैरता हुआ अलग-अलग दिशा में महल बनाने के लिए कहा, साथ ही उन्होंने वरदान में मांगा कि उनकी मृत्यु तभी हो, जब अभिजीत नक्षत्र में तीनों भाईयों के महल एक साथ, एक साथ स्थान पर आ जाएं, तब कोई शांत पुरुष, असंभव रथ और असंभव अस्त्र से उन पर वार करे तभी उनकी मृत्यु हो। इस वरदान के कारण त्रिपुरासुर अजेय हो गया था। उसने स्वर्ग से देवताओं को निष्कासित कर दिया था, इसके अत्याचार से पृथ्वी के प्राणी भयभीत हो रहे थे। ऐसे में सभी देवी-देवताओं ने महादेव को त्रिपुरासुर का वध करने के लिए कहा, तब भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अभिजीत नक्षत्र में त्रिपुरासुर का अंत कर दिया। देवताओं ने प्रसन्न होकर महादेव को त्रिपुरारी और त्रिपुरांतक नाम दिया। इसके बाद देवलोक में उत्सव मनाया गया। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव का आभार व्यक्त करने के लिए देवता गण स्वर्ग लोक से भगवान शिव की नगरी काशी पर आते हैं और दीप प्रज्वलित कर भगवान शिव का आभार प्रकट करते हैं।

 देव दिवाली से शिव और विष्णु का नाता-


एक मान्यता यह है कि देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु चतुर्मास की निद्रा से जगते हैं और चतुर्दशी को भगवान शिव, इस खुशी में सभी देवी-देवता धरती पर आकर काशी में दीप जलाते हैं। इस दिन वाराणसी में भगवान शिव के लिए अभिषेक और गगा घाट पर 5, 7, 11, 21, 51 दीप जलाकर, पूजा और आरती की जाती है, जो पूरे देश में प्रसिद्ध है।

इसलिए भी जानी जाति है कार्तिक पूर्णिमा- 

कार्तिक पूर्णिमा के दिन कुछ अन्य शुभ घटनाएं भी घटित हुई थी। इस दिन भगवान विष्णु ने सतयुग में मत्यस अवतार लिया था। ये भी कहा जाता है कि इसी दिन माता तुलसी का भी अवतरण हुआ था ।

देव दिवाली का महत्व-

देव दीपावली के दिन गंगा में स्नान करने का बहुत महत्व माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आकर गंगा में स्नान करते हैं। इसके साथ ही इस दिन दीपदान करने का भी महत्व होता है इससे देव प्रसन्न होते हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामना को पूर्ण हैं।

देव दिवाली पूजा समाग्री-

भगवान गणेश और शिव जी की मूर्ति अथवा शिवलिंग, पीतल या मिट्टी का दीपक, घी अथवा तेल, रूई, भगवान के लिए  वस्त्र, मौली, जनेऊ, बेलपत्र, दूर्वा, फूल, इत्र, धूप, फल, नारियल, पान, सुपारी, दक्षिणा, फल, हल्दी, कुमकुम, रोली चंदन, अभिषेक के लिए जल, कच्चा दूध, शहद, दही, पंचामृत, घी, गंगाजल व कपूर इत्यादि।

देव दिवाली की पूजन विधि-

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा नदी में स्नान करना चाहिए। यदि गंगा स्नान पर नही जा सकते है तो घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है। इसके बाद भगवान शिव, विष्णु जी और देवताओं का ध्यान करते हुए पूजन करना चाहिए। शाम के समय नदी पर जाकर दीपदान करना चाहिए, यदि नदी पर नहीं जा सकते तो किसी मंदिर में जाकर भी दीपदान कर सकते है, इसी के साथ अपने घर के पूजा स्थल और घर में दीप जलाने चाहिए।

इस तरह से कार्तिक मास की पूर्णिमा पर दीपदान, अभिषेक व पूजन करने से देवताओं का आशीर्वाद और सहयोग प्राप्त होता है और मनुष्य की हर इच्छा पूरी होती है।

2 Comments

  1. अच्छा है पर तुलसी विवाह के कारण के बारे में भी लिखना चाहिए

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    1. जी सर सादर प्रणाम 🙏
      तुलसी विवाह की कहानी देव उठनी एकादशी में बतायी थी इसलिए इसमें उस पर चर्चा नहीं की।

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