"गुप्त नवरात्रि" साधना का सर्वोत्तम काल-
अंतः ऊर्जा के जागरण का सर्वोत्तम नौ दिन, जिन्हें गुप्त नवरात्रि के नाम से जानते हैं। वर्ष 2022 की पहली गुप्त नवरात्रि माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को 2 फरवरी दिन बुधवार से प्रारंभ हो रही है। जिसका समापन 10 फरवरी दिन गुरुवार को होगा। व्रत करने वाले साधकों के लिए घट स्थापना का सबसे उपयुक्त समय 2 फरवरी की प्रातः 7:09 AM से 8:31 AM तक का होगा।
वर्ष में दो नहीं, चार नवरात्रियां होती हैं-
प्रत्येक वर्ष में चार नवरात्रियां आती हैं। जिनमें दो नवरात्रियों को गुप्त नवरात्री और शेष दो नवरात्रियों को प्रत्यक्ष नवरात्रि कहते हैं। किंतु हम में से अधिकांश को ये जानकारी नही होती। उन्हें सिर्फ वर्ष की दो प्रत्यक्ष नवरात्रियां ही मालूम है। जो चैत्र एवं अश्विन माह में पड़ती है। जबकि उससे कई अधिक पुण्यदाई और लाभकारी यह गुप्त नवरात्रि होती हैं।
हिन्दू सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति के अनुसार हिंदू नव वर्ष की शुरुआत चैत्र माह से होता है। इसी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक की तिथि को चैत्र नवरात्रि कहते है।
त्रेता युग में इसी चैत्र नवरात्रि के नवमी तिथि में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र ने अयोध्या में महाराजा दशरथ के घर में जन्म लिया था। यह नवरात्रि वर्ष की पहली प्रत्यक्ष नवरात्रि होती हैं।
इसके 3 माह के पश्चात आता है, आषाढ़ मास। जिसके शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक की तिथि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। यह वर्ष की दूसरी नवरात्रि होती है।
इसके 3 माह पश्चात आता है, अश्विन मास का महीना। यह वर्ष की तीसरी प्रत्यक्ष नवरात्रि होती है। जिसे शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं।
मां जगत जननी जगदंबा ने 9 दिनों तक महिषासुर से युद्ध करने के पश्चात इसी मास के दशमी तिथि को महिषासुर का वध कर देवताओं का उद्धार किया था। तभी से यह नवरात्रि प्रचलन में है। इसी नवरात्रि के दशमी तिथि को भगवान श्री रामचंद्र ने माता सीता का हरण करने वाले दुष्ट दैत्य रावण का वध भी किया था। जिस कारण इस नवरात्रि को विजयदशमी अथवा दशहरे के रूप में भी मनाया जाता है।
इसके 4 माह के पश्चात आता है माघ का महीना, इस माह के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से लेकर नवमी तक की तिथि, गुप्त नवरात्रि के रूप में मनाई जाती है। यहां इस नवरात्रि में 1 माह का समय अत्यधिक बढ़ जा रहा है जो कि संभवतः इसके बीच में पड़ने वाले खरमास के कारण होता है।
इसी नवरात्रि के पंचमी तिथि को ज्ञान की देवी मां सरस्वती का अवतरण भी हुआ था। जिसे बसंत पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है।
इस तरह से पूरे वर्ष में चार नवरात्रिया आती हैं।
गुप्त नवरात्रि की युगों पूर्व मान्यताएं-
वास्तव में युगो पूर्व यह चारों नवरात्रियां गुप्त नवरात्रिया ही थी। किंतु युगों के परिवर्तन के साथ-साथ इनमें भी परिवर्तन हो गया। कहा जाता है प्राचीन काल के हमारे ऋषि, मुनि और पूर्वज इन चारों गुप्त नवरात्रों में अपनी अंतः उर्जा का जागरण कर लेते थे। यानी कि वे इसी नौ दिवसीय साधना में अपनी जप, तप, त्याग, तितिक्षा, संयम, सेवा और सदाचार से अपनी अंतः उर्जा का इतना जागरण कर लेते थे कि उन्हें और किसी साधना की जरूरत ही ना पड़ती थी।
यद्यपि ऐसी भी मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि तंत्र साधकों के लिए होती हैं। जिस कारण से इन नवरात्रों में 10 महाविद्यों की पूजा की जाती है। ये 10 महाविघा मां शक्ति के ही 10 स्वरूप है। जो -
1. महाकाली
2. महातारा
3. त्रिपुरसुंदरी
4. छिन्नमस्ता
5. भैरवी
6. बगलामुखी
7. कमला
8. धूमावती
9. भुवनेश्वरी एवं
10. मां मातंगी के नाम से जानी जाती हैं। ये तंत्र शक्तियों की अधिष्ठात्री देवी हैं और मन इच्छित अभीष्ट को पूर्ण करने वाली हैं। किंतु 10 विद्याओं से जुड़ी तंत्र साधनो की तपश्चर्या योग्य गुरु के संरक्षण एवं निर्देशन में ही करना चाहिए।
अगर हम मां के 10 शक्तियों की उपासना नहीं कर रहे हैं या हमें इसका ज्ञान नहीं है, तो इन गुप्त नवरात्रि में मां के नौ स्वरूपों का पूजन कर सकते हैं यह नौ स्वरूप है-
1. मां शैलपुत्री
2. मां ब्रह्मचारणी
3. मां चंद्रघंटा
4. मां कुष्मांडा
5. मां स्कंदमाता
6. मां कात्यायनी
7. मां कालरात्रि
8. मां महागौरी एवं
9. मां सिद्धिदात्री
माता के पूजन की विधि व्यवस्था-
मां के पूजन हेतु एक छोटी आम की चौकी पर अथवा अपने उपासना गृह में नए अथवा स्वच्छ वस्त्र को बिछाकर माता की सुंदर प्रतिमा को स्थापित करें। मां की प्रतिमा के दायी तरफ नीचे भूमि पर गाय की गोबर की चौकी बना ले, उसके ऊपर मिट्टी का कलश रखें, जो तीन चौथाई हिस्सा जल से भरा हो। इस जल में कुछ मंगल द्रव्य डालें। जैसे कि हल्दी, अक्षत कुमकुम, सुपारी एवं सिक्का इत्यादि। तत्पश्चात उसके ऊपर आम का पल्लव रखें और उसके ऊपर चुन्दरी अथवा कलावा लपेटकर नारियल को रख लें। कलश के गले में कलावा बांधकर ॐ अथवा स्वास्तिक बना दे।
कलश का मंत्रोक्त विधि से अथवा भावपूर्ण पूजन करें। मां के चित्र के सामने अक्षत, रोली एवं आटे की सहायता से अष्टदल कमल बना ले, उसके ऊपर एक कटोरी में अक्षत अथवा शक्कर भरकर, उसके ऊपर अखंड दीप प्रज्वलित कर ले।
साधना काल में क्या करें और क्या ना करें-
1. गुप्त नवरात्रि में की जाने वाली साधना का प्रदर्शन न करें।
2. साधना काल में लिए हुए संकल्प को पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ पूर्ण करें।
3. इस काल में दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं नवार्ण मंत्र का जप अवश्य करें।
4. भोजन में तामसिक पदार्थों के खानपान का संयम रखें।
5. ब्रम्हचर्य का पालन करें।
6. पलंग पर सोने की अपेक्षा भूमि पर चटाई या दरी बिछाकर शायन करें।
7. उपासना काल के दौरान नाखून, दाढ़ी, बाल न बनवाये।
8. किसी जरूरतमंद, गरीब, दीन-दुखी और बेसहारों की मदद करें।
9. सत्य बोले, मधुर बोलें और संयम से रहे।
10. नवमी के दिन घर पर हवन करें। कन्या को भोजन कराएं और उनका आशीर्वाद ले।

