एकादशी व्रत को सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ व्रत बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि वर्ष भर के सभी व्रतों को न कर पाने वाला व्यक्ति मात्र एक एकादशी व्रत को करके सभी व्रतों के पुण्य को प्राप्त कर लेता है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को यह व्रत किया जाता है। इस तरह से पूरे साल में 24 एकादशी पड़ती है। प्रत्येक एकादशी का अपना अलग महत्व व फल हैं। इस क्रम में आज हम बात कर रहे हैं पौष मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी की।
पुत्रदा एकादशी व्रत एक साल में 2 बार आती है पहली पुत्रदा एकादशी पौष मास में जिसे की पौष पुत्रदा या पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी के नाम से जानते हैं। और दूसरी पुत्रदा एकादशी श्रावण मास में आती है। जिसे कि श्रवण पुत्रदा या श्रवण शुक्ल पुत्रदा एकादशी व्रत के नाम से जानते हैं। संतान प्राप्ति की कामना से किया जाने वाला यह व्रत, सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ और शीघ्र फलदाई बताया गया है। यह एकादशी संतान ना होने वाले मनुष्य के लिए बहुत खास महत्व रखता है। जिन व्यक्तियों को संतान प्राप्ति में बाधाएं आ रही हैं और जिन्हें पुत्र की कामना हो, उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
पौष पुत्रदा एकादशी दिन,तारीख व्रत पारण समय-
एकादशी तिथि बुधवार 12 जनवरी 2022 को सायंकाल 4:49 PM से ही प्रारंभ हो जाएगी जिसकी समाप्ति गुरुवार को 7:32 PM मिनट पर होगी। इसलिए पुत्रदा एकादशी व्रत 13 जनवरी 2022 दिन गुरुवार को किया जाएगा।
व्रत रखने वालों के लिए व्रत के पारण का समय 14 जनवरी दिन शुक्रवार को सुबह 7:15 AM से 9:21 AM तक का होगा।
एकादशी पूजन की विधि-
एकादशी व्रत करने वालों को इस व्रत के नियम का पालन एक दिन पूर्व यानी के दशमी तिथि के शायं काल से ही प्रारंभ कर देनी होती है।
1- व्रत करने वाले को दशमी के दिन शाम में भोजन यानी अन्न को ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान श्रीहरि का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
2- अगले दिन यानी एकादशी के दिन प्रातः कॉल ब्रह्म मुहूर्त में उठे दैनिक कार्य से निवृत्त हो स्नान करे और साफ स्वच्छ वस्त्रों को धारण करें।
3- श्री हरि के सम्मुख एक दीपक जलाएं और एकादशी व्रत का संकल्प लें।
4- संभव हो तो कलश स्थापित करें तत्पश्चात भगवान श्री हरि विष्णु की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से आचमन स्नान वस्त्र यगोपवित चंदन धूप दीप नैवेद्य ऋतु फल इत्यादि चढ़ाते हुए पूजन करें।
5- विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु स्त्रोत का पाठ करें, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ नमो नारायणाय मंत्र या फिर संतान प्राप्ति के उद्देश्य हेतु गोपाल मंत्र का पाठ करें। इसके पश्चात पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा का पाठ करें और भगवान की आरती करें।
6- पूजन समाप्ति के पश्चात पूरे दिन निराहार रहते हुए पूरे दिन भगवान श्री हरि विष्णु का ध्यान करें और शाम को सायं कालीन पूजन के पश्चात फलाहार ग्रहण करें।
7- एकादशी की रात्रि को श्रीहरि का पूजन भजन कीर्तन करते हुए समय व्यतीत करना चाहिए।
8- दूसरे दिन यानी द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन और दान दक्षिणा देने के पश्चात व्रत का पारण करें।
9- एकादशी के दिन दीप दान करने के महत्व को बहुत ही श्रेष्ठ बताया गया है अतः इस दिन दीपदान अवश्य करें।
पुत्रदा एकादशी की पावन पौराणिक कथा-
कथा द्वापर युग की हैं जहां पर धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से पुत्रदा एकादशी व्रत कथा का महात्म्य पूछ रहे हैं-
धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं- हे श्री कृष्ण आपने मुझे एकादशी व्रत की कई कथाएं सुनायी है। अब कृपा करके मुझे पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बतलाइए। इस दिन कौन से देवता का पूजन होता है तथा उसकी क्या विधि है।
इस पर भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं,- हे राजन पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इसका पूजन विधि विधान से करना चाहिए। इस व्रत में नारायण भगवान की पूजा करनी चाहिए इस के पुण्य से मनुष्य तपस्वी विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। मैं आपको इसकी एक कथा सुनाता हूं ध्यान से सुनिए।
भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था। उसके कोई संतान नहीं थी। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। संतान न होने के कारण वह सदैव चिंतित रहती थी। इधर पुत्रहीन राजा के पित्र रो-रो कर के पिंड लेते और सोचा करते थे, इसके बाद हमें पिंड कौन देगा। इधर राजा को भी राज वैभव से भी संतोष नहीं होता था जिसका एकमात्र कारण उसका पुत्र हीन होना था। राजा विचार करता था कि मेरे मरने पर मुझे कौन पिंड देगा। बिना पुत्र के पित्रों और देवताओं से उऋण नहीं हुआ जा सकता।
जिस घर में पुत्र ना हो वहां सदैव अंधेरा ही रहता है। इसलिए मुझे पुत्र की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि मिलते हैं। इस तरह राजा दिन रात इसी चिंता में लगा रहता। एक दिन राजा ने अपना शरीर त्याग देने की बात सोची, परंतु विचार करने लगा की आत्मघात करना महापाप है। राजा इस तरह मन में विचार कर एक दिन छिपकर वन को चला गया। राजा घोड़े पर सवार होकर वन में पक्षियों जानवरों उनके बच्चों और तरह-तरह के वृक्षों को देखता और अपनी संतान हीनता को सोच पुनः दुखी हो जाता।
काफी देर तक जंगल में इस तरह से घूमते और सोच विचार करते हुए उसे जोर की प्यास लगी और वह प्यास से व्याकुल हो, पानी की तलाश में आगे बढ़ा। कुछ ही दूर आगे जाने पर उसे एक सरोवर मिला । जहां उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने थे। उस समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा मन में प्रसन्न होकर सरोवर के किनारे बैठे हुए मुनियों को देखकर घोड़े से उतरा और उन्हें दंडवत करके उनके सम्मुख बैठ गया। राजा को देखकर मुनीश्वर बोले हे राजन् हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं तुम इस जगह कैसे आए? इस पर राजा ने उनसे पूछा हे मुनीश्वर आप कौन हैं, और किस लिए यहां हैं सो कहिए, मुनि बोले हे राजन् आज पुत्र की इच्छा करने वाले को संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है। हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर पर स्नान करने आए हैं इस पर राजा बोला हे मुनीश्वर मेरे भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे एक पुत्र का वरदान दीजिए मुनि बोले हे राजन् आज पुत्रदा एकादशी है आप आज इस व्रत को अवश्य ही करें। भगवान की कृपा से आप के संतान अवश्य होगी। मुनि के वचनों के अनुसार राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और दूसरे दिन द्वादशी को व्रत का पारण कर मुनियों को प्रणाम करके अपने महल को वापस आ गये।
कुछ समय पश्चात रानी ने गर्भधारण किया और 9 माह के पश्चात उसके 1 पुत्र रत्न पैदा हुआ। वह राजकुमार अत्यंत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजा पालक हुआ।
इस तरह से श्री कृष्ण भगवान महाराज युधिष्ठिर को संबोधित करते हुए बोले, हे राजन् पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी से श्रेष्ठ और कोई व्रत नहीं संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत हर किसी को अवश्य करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत कथा का श्रवण करते हैं व पठन करते हैं उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है है।
एकादशी व्रत के लाभ-
1- इस व्रत को करने से सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है।
2- दुर्भाग्य एवं बाधाओं से मुक्ति मिलती है
3- व्रत करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है
4- विवाह बाधा समाप्त होती है
5- आत्म शांति प्राप्त होती है
6- व्यक्ति निरोगी एवं स्वस्थ रहता है
7- पितरों को राक्षस भूत पिशाच आदि योनि से मुक्ति मिलती है
8- पित्र दोष दूर होता है
9- हर तरह के श्राप, पाप और विकार नष्ट हो जाते हैं
10- चिंताओं से मुक्ति मिलती है
11- कार्यों में सफलता प्राप्त होती है
12- संतान की प्राप्ति होती है
13- कोर्ट कचहरी एवं मुकदमा में सफलता प्राप्त होती है
14- शत्रु पराजित होते हैं
15- यश कीर्ति ऐश्वर्य एवं प्रसिद्धि बढ़ती है।
16- ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है
17- दुख दर्द दूर हो सिद्धियों की प्राप्ति होती है
18- मोह माया तृष्णा एवं अहंकार से मुक्ति मिलती है
19- खोया हुआ धन संपदा एवं वैभव वापस प्राप्त होता है
बढ़िया
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