अंग्रेज कृष्ण भक्त रोनाल्ड निक्सन

          हमारा भारतवर्ष देवो ऋषियो, मुनियों, संतों, दिव्य मानव और महापुरुषों की भूमि रही है यहां की धर्मिक, संस्कृतिक, आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वरीय अनुराग ने सहस्त्र लोगों के जीवन को तारा है और उन्हें एक साधारण मानव से देव मानव में प्रतिष्ठित किया है इसी क्रम में आज हम चर्चा कर रहे हैं एक अंग्रेज कृष्ण भक्त रोनाल्ड हेनरी निक्सन की। 

         रोनाल्ड हेनरी निक्सन जिनका जन्म 10 मई 1898 में इंग्लैंड के चेल्टेनहैम में हुआ था । अपनी उम्र के 18 साल में ही निक्सन ब्रिटिश लड़ाकू विमान के पायलट हो गए थे और प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेते हुए युद्ध में हुए महा विनाश के साक्षी भी रहे। युद्ध काल के दौरान ही उन्हें एक दो बार ऐसा भी महसूस हुआ कि कोई दिव्य सत्ता ने उनके प्राणों की रक्षा की। युद्ध की भयानक घटनाएं, विनाश और नरसंहार को देख इनका अंतः करण व्याकुल और अशांत सा हो गया जिसके चलते युद्ध समाप्ति के पश्चात उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। और अंतः करण की शांति के तलाश में निकल पड़े।

          कहा जाता है कि एक बार उन्होंने भगवान बुद्ध की ध्यानस्थ तस्वीर को देखी, उनके बारे में विस्तृत जानकारी करने पर जब उन्हें ये ज्ञात हुआ कि ऐसे दिव्य और समाधिस्थ मुद्रा को प्राप्त पुरुष भारत में कई हुए और है भारतवर्ष आध्यात्मिक क्षेत्र में शीर्ष स्थान रखता है।

 इस बात की जानकारी होते ही उन्होंने भारत आने का निश्चय किया। सन 1921 में उन्होंने इंग्लैंड में रहते हुए लखनऊ  विश्वविद्यालय जिसका उस समय नाम पर कैनिंग कॉलेज हुआ करता था मैं लेक्चरर के लिए आवेदन किया। आवेदन स्वीकृत हुआ और वे लखनऊ आ गये। मन की शांति और ज्ञान की खोज में भटक रहे निक्सन को विश्वविद्यालय के कुलपति ज्ञानेंद्र नाथ चक्रवर्ती की धर्मपत्नी मोनिका देवी चक्रवर्ती उनको एक मार्गदर्शक सत्ता के रूप में प्राप्त हुई। जिन्होंने 1928 में वैराग्य को धारण कर यशोदा माई के नाम से विख्यात हुई। निक्सन ने उनसे वैराग्य की दीक्षा ली। और कृष्ण प्रेम नाम से प्रसिद्ध हुए।

           1930 में यशोदा माई और कृष्ण प्रेम ने उत्तराखंड के अल्मोड़ा के निकट एक आश्रम की स्थापना की। जो आध्यात्मिक ज्ञान और भगवत भक्ति संयुक्त वैष्णववाद का प्रमुख स्थल बने। 1944 में यशोदा मा की मृत्यु हुई और कृष्ण प्रेम आश्रम के प्रमुख हुए। 1948 में उन्होंने दक्षिण भारत का भी दौरा किया जहां पर उन्होंने श्री रमण महर्षि और श्री अरविंदो से भी ज्ञान की प्राप्ति की।

       रोनाल्ड निक्सन यानी के कृष्ण प्रेम जिनका श्री कृष्ण कन्हैया जी से इतना प्रगाढ़ प्रेम था कि वे कन्हैया को अपना छोटा भाई मानने लगे थे आश्रम में भोजन प्रसाद की व्यवस्था ये स्वयं देखा करते थे। 

      एक दिन निक्सन जी ने ठाकुर जी के लिए हलवा बनाया और बड़े प्यार से उन्हें हलवे का भोग लगाया कुछ समय पश्चात जब पर्दा हटा कर उन्होंने हलवे को देखा तो उसमें छोटे-छोटे उंगलियों के निशान बने हुए थे। जिसे देख कर वह श्री कृष्ण के प्रेम में विह्वल हो उठे, उनकी आखों से आश्रु की धारा बहने लगी। इससे पहले भी वे कान्हा को कई बार भोग लगा चुके थे लेकिन ऐसी अनुभूति उन्हें पहले नहीं हुई थी। 

     ऐसे ही एक घटना है जब सर्दियों का समय था, भक्त निक्सन रात्रि में कुटिया के बाहर सोया करते थे | जबकि ठाकुर जी को अंदर कुटिया में अच्छे से आसन बिस्तर लगाकर विधिवत रजाई ओढाकर उन्हें सुला कर फिर खुद लेटते जाया करते थे |

‌‌‌     एक दिन की बात है निक्सन सो रहे थे।मध्यरात्रि की बात है। जब अचानक उनको ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें आवाज दी हो... दादा ! ओ दादा !

   वह हड़बड़ा कर उठे और चारों तरफ देखने लगे जब उन्हें वहां कोई नहीं दिखाई दिया तो वे इसे एक भ्रम मान करके पुनः लेट गये । लेकिन यह क्या उनके लेटते ही पुनः उन्हें आवाज सुनाई दी दादा ! ओ दादा !

          अब वह घबराए हुए उठे और कुटिया के भीतर भाग कर गए अंदर जाने पर उन्होंने देखा कि वे आज ठाकुर जी को रजाई उढ़ाना ही भूल गए थे। उन्होंने ठाकुर जी को रजाई ओढ़ाया और बड़े प्यार से ठाकुर जी से बोले क्या आपको भी सर्दी लगती है?

     निक्सन जी के ऐसा कहते ही ठाकुर जी की विग्रह से अश्रुओं की धारा बह निकली, ठाकुर जी को इस तरह रोता देख निक्सन जी भी फूट फूट कर रोने लगे। 

       उस रात्रि ठाकुर जी के प्रेम में वह अंग्रेज इतना रोया कि उनकी आत्मा उनके पंचभौतिक शरीर को छोड़कर बैकुंठ को चली गयी। इस तरह से 14 नवंबर 1965 को यह अंग्रेज संत 67 वर्ष की आयु में भगवान के चरणों में अपने शरीर को त्याग कर मोक्ष को प्राप्त कर लिया।

       सच ही कहा गया है अगर ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था, श्रद्धा और भक्ति है तो उसे ईश्वर के साक्षात्कार जरूर होते हैं। श्री बांके बिहारी लाल की जय।

















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