सूर्य एवं चंद्र ग्रहण का वैज्ञानिक पक्ष

 "ग्रहण" क्यों और कैसे-

Solar Eclipse

   सूर्य एवं चंद्र ग्रहण का होना एक खगोलीय घटना है। हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ परिक्रमा करती है और चंद्रमा हमारी पृथ्वी के चारों तरफ। इस परिक्रमा के क्रम में जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है, यानी के सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी जब तीनों क्रमशः एक सिधाई में हो जाते हैं। तो यह सूर्य ग्रहण होता है जिसे सोलर एक्लिप्स भी कहते हैं। यह तीन प्रकार के होते हैं। 

   1. पूर्ण सूर्य ग्रहण (Full Solar Eclipse) 

   2. आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial solar Eclipse) और

   3. वलयाकार सूर्यग्रहण (Elliptical solar Ecalips) 

      पूर्ण सूर्य ग्रहण की स्थिति में चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और सूर्य के पूरे प्रकाश को रोक लेता है। आंशिक सूर्य ग्रहण की स्थिति में चंद्रमा सूर्य के कुछ अंश या अल्प भाग को ढकता है। इसमें सूर्य का शेष भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है। जबकि वलयाकार सूर्यग्रहण में चंद्रमा पृथ्वी से काफी दूर होते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच होता है। इस तरह के ग्रहण में चंद्रमा सूर्य के केवल मध्य भाग को ही ढ़क पाता है और सूर्य की पूरी गोलाई चंद्रमा में नहीं आता। जिसे पृथ्वी से देखने पर यह एक वलय या कंगन के रूप में चमकता हुआ दिखाई देता है।

      इसी तरह से जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनों एक ही क्रम में आ जाते हैं, यानी के सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है, तब यह घटना चंद्रग्रहण के रूप में जानी जाती है। चंद्रग्रहण भी 3 तरह के होते हैं। जिसे की 

  1. उपच्छाया चंद्र ग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse)  

  2. आंशिक चंद्र ग्रहण (Partial Lunar Eclipse) और 

  3.पूर्ण चंद्रग्रहण (Total Lunar Eclipse) 

 के नाम से जानते हैं। उपच्छाया चंद्र ग्रहण में सूरज धरती और चांद एक सीध में नहीं होते हैं फिर भी सूर्य के कुछ प्रकाश को धरती, चांद तक पहुंचने से रोक देती है। जिससे चांद का ऊपरी सतह पृथ्वी की छाया में आ जाने पर यह ग्रहण उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहलाता है। इसमें चंद्रमा का प्रकाश थोड़ा मध्यम हो जाता है। किंतु चंद्रमा के आकार में कोई फर्क नहीं पड़ता। कभी-कभी तो इस ग्रहण को बतलाना भी मुश्किल होता है। अब बात करते हैं आंशिक चंद्रग्रहण की। यह चंद्रग्रहण तब होता है। जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आंशिक रूप से आ जाती है। और अपनी छाया से चंद्रमा के कुछ हिस्से को ढक लेती है। जबकि पूर्ण चंद्र ग्रहण में सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी पूर्ण रूप से आ जाती है। जिससे चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी से ढक जाता है। इस क्रम में सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक ना पहुंचने से चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देता है। जिससे ब्लड मून भी कहते हैं। यहां यह ध्यान देने का विषय है कि सूर्यग्रहण सदैव अमावस्या को ही लगता है। जबकि चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा की रात को।

  ज्यादातर सूर्य ग्रहण आंशिक ही होते हैं। क्योंकि पूर्ण सूर्यग्रहण के समय चांद को सूर्य के सामने से गुजरने में 2 घंटे का समय लगता है। जबकि पूर्ण सूर्य ग्रहण (चंद्रमा द्वारा सूर्य को ढकने की कुल) अवधि 7 मिनट से लेकर अधिकतम 11 मिनट की हो सकती है। इस घटना को पृथ्वी के बहुत कम हिस्से पर देखा जा सकता है। अधिकतम 10,000 किलोमीटर लंबे और 250 किलोमीटर चौड़े संपर्क क्षेत्र में। जबकि पूर्ण चंद्रग्रहण को पृथ्वी के किसी भी भाग से देखा जा सकता है। पूर्ण चंद्र ग्रहण (पृथ्वी द्वारा सूरज को ढकने की कुल) की अवधि  30 मिनटों से लेकर 1 घंटे या इससे ज्यादा की भी हो सकती है। इसके साथ ही सूर्य ग्रहण को नंगी आंखों से कभी नहीं देखना चाहिए। जबकि चंद्रग्रहण को हम बिना किसी लेंस के सहारे नंगी आंखों से देख सकते हैं।

Lunar Eclipse
Lunar Eclipse

  खगोल शास्त्रीय गणना के अनुसार 18 वर्ष 18 दिन की अवधि में 41 सूर्य ग्रहण और 29 चंद्रग्रहण होते हैं। इस तरह से 1 वर्ष में पांच सूर्य ग्रहण तथा दो चंद्रग्रहण हो सकते हैं। लेकिन प्रायः 4 से अधिक ग्रहण बहुत कम ही देखने को मिलते हैं। वैज्ञानिकों ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि प्रत्येक ग्रहण 18 वर्ष 11 दिन के उपरांत पुनः लगता है। लेकिन संपात बिंदु के निरंतर गतिशीलता के चलते वह अपने पुराने स्थान पर ही होगा ऐसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता  है।

                                    Scientific causes of Solar and lunar Eclipse




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